Tuesday, September 22, 2015

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Saturday, September 19, 2015

Acceptance

                                                                     Acceptance                                                                                                             दोस्तों आज मै बताउँगा की हकलाना क्या है.हकलाहट पर विजय पाना हो या किसी अन्य कार्य मे !आपको पहले स्वीकार्य करना ही पड़ेगा आइये देखते है कैसे स्वकार्य लोग कार्य में करते हैं। और सफल होते हैं।                                                                            
1 .  डॉक्टर ;सबसे पहले वह स्वीकार्य करते हैं कि हाँ मैं डाक्टर हूँ। तब लोग उसके पास आते है कि और चेकप करवाते है। यदि डाक्टर स्वीकार्य न करे तो उसकी डाक्टरी शायद नहीं चलेगी।                                                                                 2 . मजदूरः यदि कोई मजदूर स्वीकार्य करता हैं कि हाँ मैं मजदूर हूँ तभी उसे काम मिलता हैं और उसकी प्रगति होती हैं।                                                                                                                                                                                                                                                                     3 . एट्स का मरीज : मरीज किसी भी वीमारी का हो उसे पहले स्वीकार्य करना ही पड़ता हैं, कि हाँ मैं इस रोग पीड़ित  हूँ। तभी घर वाले समाज वाले लोग डॉक्टर को दिखाते हैं। और मरीज ठीक होता हैं,यदि वीमारी है तो स्वीकार कीजिए और उचित सलाह लीजिए गा। 

लड़की का फोन


                                        लड़की का फोन                                                                    
   एक बार एक लड़की का फोन मेरे मोबाइल में आया यह हमसे बड़े ही धीरे से मधुर आवाज में कहती है सर मै राधिका बोल रही हूँ। मैंने पूछा आप कहा से बोल रही हों  राधिका जी बोलती है मध्य प्रदेश की राजधानी से बोल रही हूँ। मै तो समझ गया कि राधिका जी को भोपाल बोलने से डर लगता है इसलिए वह बोल रही हैं ,कि मैं मध्य प्रदेश की राजधानी से बोल रही हूँ।  मैंने फिर से बोली आपके सतना की जो राजधानी है वहीं से बोल रही हूँ। मैंने कहा आप भोपाल से बोल रही है। तब राधिका ने कही  हाँ हाँ हाँ वही से ,मै भी थोड़ा मजाक के मुड में था मैंने फिर कहा मैडम जी आप कहा से बोल रही हैं। राधिका जी फिर बोलती हैं। वही जो आपने अभी कहा था। वही से बोल रही हूँ। मैंने कहा मैं क्या कहा था बताइये। राधिका जी फिर वही स्टाइल अपनाती हैं और कहती है ,मध्य प्रदेश की जो इन्दौर के आसपास शहर है वहीं से बोल रही हूँ। अब आप सोचिए भोपाल शब्द से कितना डर रही है राधिका जी अपनी हकलाहट को इतना छुपा रही है। जैसे जेल होने वाली है। राधिका जी आप भोपाल को भो भो भो भोपाल भी तो बोल सकती थी जरा बोल कर देखिये। दोस्तो 95 -99 % लोगों को हकलाहट इसीलिए होती है, क्योंकि वे हकलाहट को अपना दुश्मन मानते है। और लगातार इससे बचने का प्रयास करते हैं।  और बार बार हार जाते है। इसके बाद छुपाने और अन्दर ही अन्दर संघर्श के अलावा कुछ नही बचता इसीलिए आप हकलाते हैं। क्यों छुपाते हैं अपनी हकलाहट को दोस्तो यह सबसे बड़ा सवाल है। कि हम क्यों छुपाते है अपनी हकलाहट को!लोगों से, दोस्तों से, घर वालों से, अपने आप से भी, क्या वाकई में यह छुपाने योग्य विमारी है। क्या छुपाना ही समस्या का हल होता है क्या हमें 100 % छुपाने में सफलता हांसिल होती है। यदि नही तो इसका स्थाई समाधान क्या है इस सवालों का जबाब आगे आपको विस्तार से मिलेगा। इस सवालों का जबाब आगे आपको विस्तार से मिलेगा। दोस्तो हमारी सोच कुछ इस प्रकार से है। 
1 . हकलाना बहुत बेकार बीमारी है। 
2 . हकलाना गुप्त रोग है। इसे अधिक से अधिक छुपाया जाए।  
3 . यदि किसी को पता चल गया कि मैं हकलाता हूँ तब हमारी बेज्जती हो जायेगी लोग मेरा मजाक उड़ाएगे।  4 . हम हकलाने वाले लोग, लोगों की आँखो से बहुत परेशान हैं , हमें लगता है यदि आँखे मिला कर बोलूँगा तो सामने वाला व्यवित मेरी हकलाहट के ब्लकेज को देख लेगा और हमारी बेज्जती हो जाएगी। 
5 . यदि मै नही हकलाता तो आज बहुत आगे होता !कोई काम अधिक ले ले, कम पेमेन्ट दे दे , गाली भी सहन कर सकता हूँ। पर बोलने का काम मैं नहीं कर सकता !                                                                                          

STAMMERING PSYCHO LOGY


                              STAMMERING  PSYCHO LOGY
 हकलाना क्यों होती है, सबसे पहले आप अपने आप से पुछिये?; जहां तक मेरा अनुभव कहता है,कि हकलाहट होने का मेन कारण ''छुपाना '' है। हम जब बोलते है तो बोलने के पहले हमें पता चल जाता है, कि मै किस अक्षर या शब्द में रुकने वाला हूँ।  जैसे मान लीजिए कि कोई वाक्य '' मैं सूरज हूँ बहुत दिनों से मैहर में रहता हूँ '' बोलना है। अब हमारी आदत होती है ,कि बोलने के पहले पूरे वाक्य को मन ही मन चेक करते है और प्रीब्यू देखते है, की मै किस शब्द में रुकने वाला हूँ या मैं किस शब्द को नही बोल पाउँगा। और बोलने के पहले ही हम तय कर लेते है कि मै इस शब्द को नही बोल पाउँगा। यह भी कह सकते हैं। कि हम बोलने के पहले ही हार मान लेते हैं कि मैं वह शब्द नहीं बोल पाउँगा। मान लीजिए मैं सूरज बहुत दिनों से मैहर में रहता हूँ। इस वाक्य को अपने बोलने से पहले मन में चेक किया और मैहर शब्द को कठिन मान लिया और नही बोल पाने का निर्णय ले लिया लेकिन आप पूरा प्रयास करते है।  कि जब कठिन शब्द मैहर आये तब हम छूपा लें और सामने वाले को पता ही नही चले। इस समय आप पूरा जोर ठीक बोलने पर लगा रहे होते है और छुपाने का पूरा प्रयास कर रहे होते है। अब सवाल यह हैं, कि क्या आप पूरी तरह से छुपा पाते हैं अपने शब्दों को ? शारद नहीं।  छुपाने की आदत और न छुपा पाने की आदत के बीच संघर्स प्रारंभ होता है और आप लगातार छुपाने का युध्द लड़ते रहते है और लगातार युध्द लड़ने से आप बहुत सारे विनाशकारी विचारों , आदतों में उलझे रहते हैं।  
1 . पहले वाक्य को तोड़ मरोड़ देते हैं।  आपको बोलना है '' मेरा नाम सूरज है '' लेकिन आप इस वाक्य को सूरज नाम है मेरा, मेरा नाम है सूरज ' है मेरा नाम सूरज इस प्रकार के वाक्य बोलते हैं ऐसा बोलने से आपको क्षणिक लाभ भी मिलता है। किसी तरह बोले, बोले, तो सही यही तसल्ली आप अपने आपको देते है।  आप वाक्य को इसलिए तोड़ मरोड़ रहे है क्योंकि। सूरज बोलने का विश्वास आप में कम है। यदि आपको लगता है कि मै अभी सूरज बोल सकता हुँ। बाद में पता नही विश्वास आता हैं या नहीं।तब आप को लगता है कि अभी सूरज नहीं बोल पाउँगा। यदि  कुछ शब्द अभी बोलें तब तक शायद हमें सूरज बोलने का अभ्यास हो जाये तब आप पहले सरल शब्दों को बोलना प्रकट करते हैं। बाद में कठिन और इस प्रकार बोलते हैं। मेरा नाम है सूरज 'और आप कई बार सफल भी रहते हैं। तो आपको एक आशा रहती हैं कि मेरी यह तेविनक काम आ सकती है लेकिन ऐसा बार बार होता नही है। कई बार आपकी यह टेविनक फेल हो जाती है। और आप फिर उलझ जाते हैं।  और फिर आप सूरज की जगह ''सन '' सूर्य जैसे पर्यावाची शब्दों का सहारा लेकर वाक्य पूरा करने का प्रयास करते है।  यह प्रयास भी कई बार फेल हो जाता है तब आपका सबसे बड़ा दुश्मन हकलाना ब्लेकेज के रूप में आता है। अब आप इस ब्लेकेज को छुपाने के लिए भी बहुत सारे प्रयास करते है।  आँखो को यहाँ वहाँ घूमा लेना बोलना ही बंद कर देना हम से नहीं आता बाद में बताउँगा याद नहीं आ रहा इसी प्रकार के अनेको रूप से उपाय करने लगते हैं।                                                                   

Friday, September 18, 2015

हकलाना एक पागल कुत्ता

हकलाना एक पागल कुत्ता के जैसे है दोषतो हम हकलाना को एक पागल कुत्ता मानते है इसको देखते ही हम भागने का प्रयास करते है और यह हमको भगाने का या काटने का पूरा प्रयास करता है \ हम भाबित होकर भागने लगते है की कही यह कुत्ता हमको कट न ले \ दोषतो आप को अनुभव तो होगा ही की यदि कुत्ता आप के पीछे पड़ा है और आप भाग रहे है तो कुत्ता आप को अवश्य कट लेगा / लेकिन लेकिन आप यदि हिम्मत करने कुत्ते के सामने खड़े हो जाये और शु शु शु …………. … या शीटी बजाते रहे तो कुत्ता अपने आप धीमा हो जायेगा और यदि आप थोडा और  कुत्ते के समे  शिटी बजाते रहे  तो कुत्ता आप का दोश्त भी बन सकता है नहीं बन जाता है , हा ये बात जरुर है की कुत्ते के सामने खड़े होने के लिए आप को हिम्मत   करनी पड़ेगी, टेक्निक यूज़ करना     और यदि आप ने कुत्ते से एक बार दोषती करलिये तो  वह आप का साथ  

ठीक यही है हकलाना, आप हक्लना को कुत्ता मानते है  और   इस से  डरते है , भागते  है , बचने का प्रयास करते है , हे भगवन  यह न आये ,  ऐसा सोचते है  हकलाने वाले ,  जितना भागते है उतना अधिक यह परेसान करता है 

 मेरा आप  सब से अनुराध है की   हकलाहट को दोषत  बनाने वाली मेथड यूज़  कीजिए,