Monday, January 31, 2011

हकलाहट -----हिंदी फिल्मों


संवेदना का टोटा
एक अहम् सवाल यह है कि आखिर कब तक समाज और मीडिया द्वारा शारीरिक

और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण व्यक्तिओं को बेबस और बेचारा समझा जाता रहेगाक्या मानवीय संवेदनाओं कीपरिधि में आकर भी हम कभी सोचेंगे और निःशक्तजनों या फिर हकलाने वाले लोगों के प्रति जिम्मेदाराना रवैयाअपनाएंगे.
हिंदी फिल्मों के बारे में शायद सबसे प्रचलित वाक्य यह है कि ये समाज का आईना हैं. लेकिन क्या इस आईने में उन लोगों के लिए कोई जगह नहीं जो शारीरिक या मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण हैं? जब पूरी दुनिया एक-दूसरे के करीब आ रही है, तो आखिर कोई पीछे कैसे रह सकता है. हो सकता है कि इंसान पक्षपात करता हो पर कारोबार की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह सभी चीजों में मुनाफे का मौका तलाशता है. एक जमाना था जब यह मान के चला जाता था कि निःशक्त व्यक्ति अपने परिवार और समाज पर बोझ हैं. कमोबेश यही धारणा आज भी हमारे मन में बसी हुई है. इन सबके बावजूद हिंदी सिनेमा जगत में इन दिनों विकलांगता और विकलागों को सिल्वर स्क्रीन पर दिखाने कि बेताबी के निहितार्थ को आसानी से समझा जा सकता है.
नवम्बर 2010 में रिलीज हुई फ़िल्म 'गोलमाल 3' में एक पात्र से हकलाहट का जबरन अभिनय करवाकर हास्य पैदा करने कि कोशिश की गई है. इस फ़िल्म में एक और पात्र है जो बोल नहीं सकता लेकिन अच्छी तरह से सुन सकता है और इस पात्र का अभिनय पूरी तरह से गलत है, क्योकि जो व्यक्ति सुन सकता है वह बोल भी सकता है. आजकल लगभग हर फ़िल्म में ऐसे रोल रखे जाते हैं जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं या फिर हकलाते या तुतलाते हैं. यदि हम पिछले समय को देखें तो 'ब्लैक', 'इकबाल', 'तारे जमीं पर'  और 'पा' ऐसी बेहतरीन फिल्में हैं जिन्होंने निःशक्त लोगों के प्रति समाज में सकारात्मक सन्देश दिया है. और इन फिल्मों की सफलता ने बॉलीवुड को एक नया विषय दिया, जिसे अब हर फ़िल्म निर्माता आजमाना चाहता है.
यहाँ विकलांगता पर बनी फिल्मों के सकारात्मक पहलूओं पर चर्चा करना सामयिक होगा. विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, मध्यप्रदेश में रिसर्च आफीसर डॉनिवेदिता वर्मा कहती हैं निःशक्तता को पर्दे पर प्रदर्शित करने से इस चुनौती का सामना कर रहे लोगों और उनके परिवार को संबल मिलता है और वे कुछ हद तक मानसिक और सामाजिक दबाव से मुक्त हो जाते हैं. साथ ही समाज में इन विषयों पर जागरूकता आती है. डॉ. वर्मा आगे कहती हैं फिल्मों में हकलाहट को व्यंग्यात्मक रूप में न दिखाकर उसके समाधानात्मक पक्ष को ज्यादा महत्त्व दिया जाना चाहिए. वे कहती हैं हर व्यक्ति में कोई न कोई कमी है, इसलिए हमें इन्हें दूर करने के लिए एक-दूसरे का सहयोग और उत्साहवर्धन करना चाहिए.
पर एक अहम् सवाल यह है कि ये फिल्में शारीरिक तौर पर चुनौतीपूर्ण लोगों के प्रति कितनी संवेदनशील हैं. 'ब्लैक' जैसी संजीदा फ़िल्म ने हिंदी फ़िल्म उद्योग को चुनौतीपूर्ण चरित्रों को पर्दे पर उतारने कि प्रेरणा जरूर दी लेकिन उसके बात बनी ऐसी फिल्मों में निःशक्त पात्रों के प्रति आमतौर पर संवेदनशीलता का अभाव ही दिख रहा है. हमेशा कहानियों, चरित्रों और नयेपन की कमी से जूझने वाले बॉलीवुड ने शारीरिक अक्षमता जैसे गंभीर विषय को यहाँ मसाले में लपेट दिया. पुरानी फ़िल्म 'दोस्ती' में दो शारीरिक अक्षम दोस्त जिस तरह से एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े देखे जा सकते हैं, वैसी भावना या सम्बन्ध ताजा फिल्मों में कहीं नहीं दिखते. निर्माता और निर्देशक व्यवसायिकता और अलग करने के चक्कर में कुछ भी कर सकते हैं.
विकलांगता पर बनी फिल्में समाज को जो नकारात्मक सन्देश दे रही है, वह चिंता का विषय है. क्षेत्रीय विकलांग पुनर्वास केंद्र, भोपाल के अनुदेशक श्यामसिंह मेवाडा कहते हैं ये फिल्में समाज में विकलांगों के प्रति गलत सोच को बढ़ावा दे रही है. इससे लोग विकलांगों को दया या हंसी का पात्र समझने लगते हैं, और विकलांगों की सामाजिक समस्या जस की तस बनी रहती है. इंदौर में बधिरों कि शिक्षा से जुड़े सुनीलसिंह तोमर कहते हैं जब फिल्मों में
निःशक्तजनों को बेबस के रूप में पेश किया किया जाता है तब लोग उन्हें कमजोर और नाकाबिल समझने पर मजबूर हो जाते है. और यह स्थिति विकलांगों के पुनर्वास में बाधा उत्पन्न करती है.
हम कह सकते हैं कि निःशक्तता पर बनी फिल्में समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में कारगर हो सकती हैं, लेकिन इसके लिए फ़िल्म निर्माताओं, लेखकों और अभिनेताओं को विकलांगता के प्रति अधिक जागरूक और संवेदनशील होना पड़ेगा. इसके बाद हम देखेंगे कि बॉलीवुड पर निःशक्तता और इसका सामना कर रहे व्यक्तिओं के जीवन पर बेहतर फिल्में बनाने का सिलसिला शुरू होगा. फिल्मों में यह दिखाया जाना ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि विकलांग व्यक्ति किस तरह तमाम बाधाओं को पार करते हुए सामान्य जन के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चल रहे हैं और अपनी शेष क्षमताओं का उपयोग कर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं.
अमितसिंह कुशवाह,